कल के दैनिक अखबार दैनिक हिंदुस्तान के पटना संस्करण में रवीन्द्र राजहंस की एक कविता पढ़ी, जो बिहार की जनता को संबोधित करती है। इसमें इस बात पर जोर है कि केवल अतीत के पन्नों को ही देखकर खुश होने से बेहतर है कि अपना भविष्य सुन्दर बनाने के लिए वर्तमान में मेहनत की जाए। उम्मीद है आपको भी ये पसंद आएगी...
कहता है जामवंत
ना भूलें कि हम
दशरथ मांझी के प्रदेश के हैं
ठान लें तो कर सकते हैं
पहाड़ में सुरंग
कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प का
एक अपना ही होता है रंग
कहता है आज का जामवंत
कि हममें से हर कोई है हनुमंत
लाँघ सकता है कठिनाइयों का सागर
लगा सकता है छलांग
लौटा सकता है बिहार की बगिया में
वसंत
बंद करें हम अब मन में हीन भाव
पोसना
दूसरे को भरपेट कोसना
आखिर हम कब तक बने रहेंगे चलंत
शिकायत पेटी
कब तक गाते रहेंगे
बिहार ना सुधरी वाला गीत
चाटते रहेंगे बिहार का स्वर्णिम अतीत
अब तो हमें सफलता के सोपान पर
चढ़ना है
भविष्य के सुनहरे फ्रेम में
नए बिहार का मुस्कराता चेहरा मढ़ना है
दीवालों पर लिखें विकास के इबारत को
आँखें खोल पढ़ना है।
कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प का
ReplyDeleteएक अपना ही होता है रंग
कहता है आज का जामवंत
कि हममें से हर कोई है हनुमंत
लाँघ सकता है कठिनाइयों का सागर
लगा सकता है छलांग
लौटा सकता है बिहार की बगिया में
वसंत
RAVINDRA RAJHANS KI IS KAVITA KE PRASTUTI KE LIYE AAP[KA DHANWAD..
BIHAR BHART KI SHAN HAY KAYON KI ABHI BIHARIYAON ME DAM KHAM AUR JAAN HAY.
बंद करें हम अब मन में हीन भाव
पोसना
दूसरे को भरपेट कोसना
आखिर हम कब तक बने रहेंगे चलंत
शिकायत पेटी
कब तक गाते रहेंगे
बिहार ना सुधरी वाला गीत