Monday, March 22, 2010

विदेशी शिक्षण संस्थान विधेयक २०१० के मायने....

पिछले दिनों कैबिनेट द्वारा विदेशी शिक्षण संस्थान विधेयक २०१० को मंजूरी दिए जाने के बाद से ही इसके हानि - लाभ का आकलन शुरू हो गया है. इसके पैरोकारों का मानना है कि इस विधेयक के पारित हो जाने से भारतीय छात्रों को देश में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालयों की सुविधा मिलेगी, जिसके लिए अभी तक उन्हें बाहर जाकर भारी मात्र में विदेशी मुद्राएँ खर्च करनी पड़ती थी. एसोचैम के एक आकलन के अनुसार इससे देश को 34500 करोड़ रुपये की बचत होगी. अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा से देश के विश्वविद्यालयों के स्तर में भी सुधार होगा. शोध तथा अनुसन्धान की गुणवत्ता बढ़ेगी. कुल मिलाकर वर्तमान ग्लोबल विश्व में शिक्षा भी ग्लोबल रूप लेती जा रही है, जिसका फायदा हमारे देश में भी उठाने की कोशिश की गयी है.
तमाम संभावनावों के बीच बिल को लेकर कुछ आशंकाएं भी हैं, जो इस बात की ओर इशारा करती हैं कि इसके माध्यम से विदेशी विश्वविद्यालय जो शाखाएं देश में स्थापित करेंगे उनकी गुणवत्ता उनके मूल संस्थानों के सामान नहीं होंगी, क्योंकि इन शाखाओं में ज्यादातर शिक्षकों की भर्ती देशी शिक्षकों के ही होने की संभावना है. चूँकि इन शाखाओं में आरक्षण की सुविधा नहीं है, फलतः देश में शैक्षणिक गुणवत्ता की खाई के और चौड़ा होने की भी आशंका है. ये बात तो तय है की ये विश्वविद्यालय अपनी शाखाएं यहाँ चैरिटी के लिए नहीं वरन शुद्ध व्यावसायिक लाभ के लिए खोलेंगे, ऐसे में ये देखने वाली बात होगी कि इनसे देश के उच्च शिक्षा के माहौल में कितना सुधार होता है.
ऐसी आशंकाओं के मद्देनजर सरकार के लिए ये आवश्यक होगा कि वो इन विश्वविद्यालयों के स्तर तथा कार्यों पर कड़ी निगरानी रखे. साथ ही इस बात के भी प्रयास होने चाहिए कि इनकी स्थापना वैसे क्षेत्रों में हो जो अभी तक देश में शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं. तभी देश में शैक्षणिक असमानता दूर करने के प्रयास सार्थक होंगे.

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