Monday, April 12, 2010

सफलता का एक और अध्याय

भारतीय वैज्ञानिकों ने टी. बी. के बैक्टीरिया का जीनोम तैयार कर सफलता का एक और अध्याय लिख दिया है. हालाँकि इस बीमारी के बैक्टीरिया माइको ट्यूबरकुलोसिस के जीनों कि डिकोडिंग एक दशक पूर्व ही हो गयी थी. किन्तु अब जाकर इसके सभी 4000 जीनों कि सिक्वेंसिंग अब जाकर हुई है. इस खोज कि सबसे महत्वपूर्ण बात ये है इसे ओपन सोर्स ड्रग डिलीवरी कार्यक्रम के तहत डिकोड किया गया है, जिसके कारण कोई भी दवा कंपनी इस खोज का निर्माण दवा बनाने के लिए कर सकती है. इस कारण सस्ती दवाओं के निर्माण को बढ़ावा मिलेगा, जो भारत जैसे विशाल आबादी वाले विकासशील देश के लिए काफी लाभदायक होगा. 

Saturday, April 10, 2010

किर्गिस्तान के सबक....

मध्य एशियाई देश किर्गिस्तान में भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त जनता ने सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया है. इसके फलस्वरूप विपक्ष ने वहां सरकार का तख्ता पलटने का दावा किया है. विपक्ष ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री दानियार उसेनोव इस्तीफा देने पर राजी हो गए हैं और राष्ट्रपति कुरमानबेक बाकियेव की रजामंदी ली जानी है. हालाँकि राष्ट्रपति अभी कहाँ हैं इसकी जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है. हिंसा की लपटें राजधानी बिश्केक तक पहुँच गयी हैं. भूराजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस देश में इस तरह की अराजकता वास्तव में चिंता का विषय है. 
क्या इस तरह के घटनाओं से हमारे देश के राजनेताओं और अधिकारियों को भय नहीं लगता होगा की यदि यहाँ की जनता ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया तो उनके अस्तित्व का क्या होगा. अतः देश के राजनेताओं और अधिकारियों से अपील है कि जनता के सब्र का इम्तिहान न लें. यही उनके और देश के हित में होगा. किर्गिस्तान कि घटना से हम यही सबक ले सकते हैं. 

Tuesday, April 6, 2010

नक्सलवादी हमले: क्या जवाब हो देश का?

आज दंतेवाडा में पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों पर हुए नक्सलवादी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया है. नक्सलवादियों ने इसे ग्रीन हंट का जवाब कहा है. क्या अब भी हम उनके इन हमलों रूपी पत्थर का जवाब विकास रूपी फूल से देने को सोच रहे हैं? सवाल है कि क्या इन हमलों के प्रतिकारस्वरूप सरकार कि कार्रवाई में निरीह जनता नहीं पिसेगी?
अब जरुरत इस बात की है कि नक्सलवाद की जो पौध वट वृक्ष बन रही है, उसे उखाड़ फेंका जाय और उसकी जगह विकास का पौधा लगाया जाय.

Monday, April 5, 2010

ऑपरेशन ग्रीन हंट: क्या वाकई समस्या का असली समाधान है?

विगत कुछ महीनों से केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को ख़त्म करने के लिए वृहत स्तर पर अभियान चलाया हुआ है, जिसे "ग्रीन हंट" कहा जा रहा है. इसके तहत सीआरपीएफ की अगुआई में स्थानीय पुलिस बल मिलकर इस कार्रवाई को अंजाम देने में लगे हुए हैं. अभियान को और मजबूती देने के लिए जम्मू कश्मीर में तैनात अर्धसैनिक बलों को भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बुला लिया गया है.
सवाल उठता है कि क्या इस वृहत अभियान से नक्सलवाद का हल ढूँढा जा सकता है? या भविष्य में प्रतिकार स्वरुप उनके और मजबूती से उभरने कि संभावना है?
मुझे ऐसा लगता है कि इन क्षेत्रों में विकास कि ईमानदार कोशिश ही  इस समस्या का उपयुक्त समाधान होगा. हाँ ये जरूर है कि इस विकास की राह में जो आड़े आए, उनके खिलाफ निपटने में कोई कोताही नहीं बरती जाए. ग्रीन हंट का उद्देश्य केवल इतना होना चाहिए कि नक्सलियों कि जो पौध सुधरकर समाज कि मुख्या धारा में आने को तैयार नहीं है, उसे समाप्त कर शेष को सम्मानजनक जीवन प्रदान किया जाए. हमारे राजनेताओं को भी इसमे अपनी रोटियां सेंकने कि बजाय देशहित में एकजुटता दिखानी चाहिए. अंततः हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शरीर के किसी हिस्से के रोगग्रस्त होने पर उसके इलाज की और जरुरत पड़ने पर उस अंग को काटकर अलग करने की आवश्यकता होती है. इसकी जगह पूरे शरीर को नष्ट करना कहीं से भी बुद्धिमानी नहीं होगी.