Tuesday, March 16, 2010

बिहार: विकास की ओर अग्रसर...

विश्व बैंक ने जारी एक रिपोर्ट में बिहार में हो रहे सकारात्मक बदलाओं पर अपनी मुहर लगा दी है. उसका कहना है कि कानून व्यवस्था में सुधार, आधारभूत संरचना के निर्माण कार्यों में तेजी तथा रोजगारपरक सरकारी योजनाओं ने यह बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा निभाई है. कुछ महीनों पूर्व ही केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) ने बिहार के विकास दर को गुजरात के बाद सबसे अधिक बताया था. उस समय सहसा लोगों को यकीन नहीं हुआ कि भ्रष्टाचार और अपराध के लिए कुख्यात हो चुका यह राज्य विकास भी कर सकता है. किन्तु विगत वर्षों में हुए विकास कार्यों और प्रयासों ने अब इस राज्य कि फिजां बदल दी है. इसमें सबसे बड़ा योगदान कानून व व्यवस्था कि सुधरती हुई स्थिति का मन जा सकता है. हाल के वर्षों में सरकार ने अपराधियों, जिनमें से कई सत्ता पार्टी से भी थे, पर जिस तरह से लगाम लगायी है, उससे लोगों का कानून - व्यवस्था में विश्वास धीरे - धीरे लौटने लगा है. आधारभूत संरचना के निर्माण कार्यों में जिस तरह से निवेश हुआ है, उससे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सुधार दिखने लगा है. जिन सड़कों को कभी gadhdhon के बीच ढूंढा जाता था, आज उनपर कहीं - कहीं ही गढ्ढे दिख रहे हैं. शहरों में जहाँ बड़े बड़े मॉल्स दिखने लगे हैं, वहीँ गाँव में स्थानीय स्तर पर रोजगार के कारण अब मजदूरों का बहार जाना भी कम होता जा रहा है. प्रवासन कि इस घटी दर ने पंजाब, हरियाणा के बड़े किसानों के माथे पर शिकन पैदा कर दी है, क्योंकि उनकी खेती में बिहारी मजदूरों का बड़ा योगदान है. पंचायत स्तर पर पचास प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण देने कि शुरुआत कर बिहार ने सामाजिक क्रांति की शुरुआत कर दी है. चाणक्य विधि विश्वविद्यालय, चन्द्रगुप्त प्रबंधन संसथान (आईआईएम) आदि जैसे उत्कृष्ट शिक्षण संस्थाओं की स्थापना के द्वारा बिहार अब भविष्य के education हब बनाने की दिशा में भी कदम बाधा चुका है.

विकास के खुमार के बावजूद इसका एक अँधेरा पक्ष भी है, जहाँ अभी भी रोशनी की जरुरत है. खुद बिहार सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में 2004 -05 से 2008 -09 के दौरान कृषि में 12 - 6 % का ऋणात्मक विकास दर दिखाया गया है. यह आंकड़ा बिहार की उस ९०% आबादी के लिए काफी गंभीर है जो गाँव में रहती है. हर्ष मंदर और एन सी सक्सेना की बिहार पर भूखमरी पर रिपोर्ट बताती है कि 2006 -०९ के बीच बिहार में 100 से अधिक लोगों कि मौत भूख से हुई है. बिहार चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के पी के अग्रवाल के मुताबिक पिछले चार सालों में एक मेगावाट बिजली का उत्पादन भी नहीं बढ़ा है. भूमि सुधार कि प्रक्रिया भी अधर में लटकी हुई है. नक्साल्वाद की समस्या दिन ब दिन और गंभीर होती जा रही रही है. कुल मिलकर अभी भी विकास की बयार सब तक नहीं पहुँच पाई है.

किन्तु इससे हमें यह अर्थ नहीं निकलना चाहिए की विकास के ये सरे आंकडे झूठे हैं. जिस राज्य के चुनाओं में जाति, धर्म और परिवार के मुद्दे छाये रहते थे, वहां के नेता अब विकास को मुद्दा बना रहे हैं, यही सबसे बड़ी बात है. आज बिहार को विकसित करने की कम से कम कोशिश तो की जा रही है. और ये हम सब मानते हैं की सफल होने के लिए कोशिश जरुरी है. केवल नेता और अफसर ही मिलकर बिहार को नहीं सुधार सकते. बिहार की जनता का भी इसमें उतना ही योगदान जरुरी है. तभी सरकारी तथा निजी विकास कार्यों को भ्रष्टाचार से बचाया जा सकता है. बिहार के लोगों को यह याद रखना होगा कि अनवरत भ्रष्टाचार और जातिगत भेदभाव ने उन्हें इतना पीछे धकेल दिया है है कि इनसे छुटकारा पाकर विकास का लक्ष्य पाने के लिए महज चलना नहीं बल्कि दौड़ना होगा. तभी हम देश के विकास में भी अंतत अपना योगदान दे पाएंगे.

5 comments:

  1. swagat hay aapka..blog ki rang birangi dunia me.

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  2. Aapka swagat hai..Bihar ke liye anek shubhkamnayen!

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  3. Achha alekh hai..anek shubhkamnayen!

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  4. सार्थक लेखन । स्वागत है ।


    गुलमोहर का फूल

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  5. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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